☘आज़ाद बंदी…

#struggle #life #blog #feeling #survive

21वीं सदी में हम प्रवेश कर चुके है और हमें अब पुरुषों के समकक्ष समझा जाने लगा हैं…लोगों की मनोदशा बदली भी हैं और सभी को ये बदलाव पसंद भी आ रहा हैं!! ऐसा आजकल आपको हर जगह सुनने और देखने को मिलेगा,और महसूस भी होता हैं की सच में बदलाव तो आया हीं हैं…लेकिन क्या सच में कुछ भी बदला हैं..??? बदलाव की लहर,स्त्रियों की स्थति में सुधार आपको आंकड़ों में जरूर नज़र आ रहा होगा, लेकिन सच्चाई तो हमारा दिल हीं जानता हैं…हर बार मन इन सवालों से घिर जाता हैं कि क्या इस समाज में हमें अब पुरुष अपनी बराबरी का समझते हैं वो भी दिल से..??,यूँ तो दुनिया में फैशन की तरह अपना लिया गया हैं हमें भी और इस बदलाव को भी! ..और कहा जाने लगा हैं कि हम उनके साथ कदम मिला कर चलने के लायक हैं और उन्हें हम पर गर्व भी हैं….

लेकिन, कभी औरतों के मुस्कराहट के पीछे दबी-कुचली अरमानों को पढ़ने की कोशिश की हैं आपने…की बस इतना जानकर संतुष्ट हैं कि अब दे तो दी हैं इन्हें आज़ादी,हर चीज़ की आज़ादी,साथ घूमने की,खाने-पीने की,और हाँ सबसे जरुरी अपने सोशल मीडिया के प्रोफाइल फोटो में भी साथ खड़े होने की आज़ादी!!…बदलाव हुआ हैं तो इसे दर्शाया भी जा रहा इनदिनों ऐसे हीं…लेकिन मेरा बस आपसब से ये सवाल हैं कि हमें कभी आपने इससे परे भी समझा हैं…

तन के भूगोल से परे.. 

एक स्त्री के मन की गाँठें खोलकर..

कभी पढ़ा है आपने??

उसके भीतर का ख़ौलता इतिहास?

अगर नहीं.. 

तो फिर क्या जानते हो आप

एक स्त्री के बारे में ????

वाक़ई कुछ नहीं जानते होंगे आप क्योंकि…

सागर की उथल-पुथल और अतलता को नापना इतना आसान है क्या ???

हम आज़ाद तो हैं लेकिन केवल दुनिया के नज़रों में..कभी किसी स्त्री को समझने की कोशिश करें फिर आपको पता लगेगा आज़ादी का मर्म कहाँ तक सिद्ध हुआ हैं उनलोगों के लिए!!! मुझे तो लगता हैं अब वो वक़्त आ गया हैं जब सच में हमें किताबी बातों को जमीं पर उकेरना शुरू कर देना चाहिए..इरादों को मन से निकाल कर अंजाम तक पहुंचाया जाना चाहिए…आंकड़ों को बदलने से कुछ हासिल नहीं होने वाला मानसिकता बदलना अनिवार्य हो गया हैं,ऐसा वातावरण तैयार करने का पहल करना होगा जिसमें हमें साँस लेने पर हीं ज़िन्दगी जी भर के जी लेने की अनुभूति हों..ऐसा परिवेश बनाने की आवश्कता हैं जिसमे हमारी बहुएं, हमारी बेटियाँ, हमारी माताएं,बहनें..बेख़ौफ,निडर, सहजता से चहल कदमी उसी तरह कर सके जैसे कि पुरुष करते हैं!! 

“दुनिया भर के हाथ बढ़ते हैं साया बनकर छूने को हमें…टटोलने को जिस्म,लेकिन वो नहीं जानते एक रुह भी होती है भीतर इसके!!”

         ~एक स्त्री! 

     P.S-google. 

❣EmotionalQueen All Rights Reserved©

                      2k17©आपकी…Jयोति🙏

65 thoughts on “☘आज़ाद बंदी…

  1. यह केवल इतना कहते हैं, जब वह गहराई से महसूस होता है। लिबर्टी और मुक्त चलने महिलाओं को ही हासिल मन होगा निर्धारित है। संघर्ष कठिन है, लेकिन वहाँ हमेशा एक तरह से मिल रहा है। तुम बहुत स्पष्ट रूप से कहते हैं कि एक सच बताने के लिए अपनी जरूरत के परिणाम निकालना आसान है। यह सुंदर है जब आप लिखते हैं।

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  2. Great topic. Women are half of the society .Muslims and Arab countries are 3rd. world countries , because women are not equal to men .Religion must stay out of Government . Women are 100% to men.Jal

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  3. I am very proud calling you my sister as the spark in your word can make anyone alive Jyoti.
    Although the time has changed and morever we witness women as front runners in every field so worry & take pride of it baaki on a lighter notion stri ke hriday mein kya hai ye toh bhagwaan bhi nahi jaan paaya toh hum to tuch prani hai😜☺

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      1. 😥😥😥 मैं भाषण सुनाती हूँ भैय्यू आपको..😢 वैसे प्रशांत भैया की हर बात मानती हूँ,उनको बता देना आप..☺😉

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      2. Haha..arre mere ko nahi sunati but i have seen here baakiyo ko toh sunaati hai😂😂😂
        Mere toh baat rakh li toh mujhe toh acha laga☺

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      1. Arre kya hua…has bhi diya kar kabhi😂
        You write so well & its just about the sentiments hides behind your beautiful words…☺

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      2. मैं हमेशा हँसती हीं हूँ भैया.. मुझे लगा की आपको बकवास लगा ये पोस्ट इसलिए…मुँह बन गया मेरा..😛 By D Way Thank you bhaiyu..❤

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  4. दरअसल ये देश ही शुरू से पुरूष प्रधान रहा और वो कभी ये स्वीकारने को तैयार ही नहीं हुआ स्त्रियाँ उससे बेहतर हो सकती है.उसे एक वस्तु ही समझा जाता रहा.बेड़ियो में जकड़े जकड़े वो खुद को ही भुल गई.ये ईतनी आसानी से नही टुटेगा..टुटी है बेड़ियाँ पहले भी पर वो उदाहरण मात्र बन कर रह गयी.और आज 21वीं सदी है ये मामुली बात नहीं.अब भी उदाहरण मात्र ही है बस थोड़ी संख्या ज्यादा है.एक औरत एक वक्त में कई काम ज्यादा सहनशील तरीके से कर सकती है और किया है उसने जब भी उसे मौका मिला है…अरे वही जन्म देती है पाल पोष कर बड़ा करती है.मै बस सोच सकता हूँ और वो आये दिन इसे महसुस करती है..दहलीज के भीतर हो या दहलीज के बाहर है कितनी बंदिशे..और कौन बच पाया है ईन बंदिशो से..कुछ की बस ईतनी योग्यता है कि वो पुरूष है ईसलिए घुरना गालियाँ देना कपड़े नापना ये ऊनका जन्मसिद्घ अधिकार है.गलत सही उसका सब सही है क्योकि वो पुरूष है ये परिवार उसी का बनाया हुआ ये समाज का उसी का बनाया हुआ है सारे नियम उसी के है…कुछ तो शुक्रगुजार उन कपड़ो का होईये.नहीं तो हर चौराहे पर है पता चलता नियत कितनी शऱीफ है. .ज्यादातर देशो का यही हाल है.हर धर्म में ईतनी अच्छी बातें लिखी है..पर हकीकत क्या है?

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    1. धर्म की किताबो में जो बातें कही गयी हैं अगर उस पर चला जाए तो फिर चिंता का विषय हीं क्या होता…हर धर्मग्रन्थ में सिर्फ ये बात कही गयी हैं कि…हम इंसान हैं न की वहाँ कही औरत और मर्द को अलग अलग कर के कुछ भी समझाया गया हैं…खैर,देखते हैं कब सुधार की गुंजाइश होती हैं पूरी तरह!!

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      1. हम सुधरेंगे जग सुधरेगा..मैने स्कुल में पढ़ा था तीसरी में..कलम वाली सिपाही क्रान्ति लाना चाहती थी..कौन समझा उसकी बात को..सब दुसरे को सुधारने में लग गये…सुधारो सुधारो मुझे क्या..कुछ अच्छा लिख के जा रहा हूँ सुकुन है..क्यो मै समझा रहा हूँ तुम सबको..पागल हूँ भुसा भरा पड़ा है मेरे दिमाग मे ..ऐ ला रे मै जा रहा हूँ 😀😁

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  5. आपने अच्छा लिखा पर हमेशा की तरह ये सवाल मुझे समझ ही नहीं आया.. इस विषय पर मेरा सवाल हमेशा उल्टा होता है.. हम लडकिया/महिलायें खुद को सिद्ध करने के लिए पुरुष की तरफ क्यों देखती हैं.. हम किसी के बराबर है उससे ऊपर हैं या उससे नीचे ये मान्य करने का अधिकार पुरुषों को किसने दिया?

    मैं अपने किसी भी कार्य के लिए किसी भी प्रकार किसी और पर निर्भर नहीं.. किसी के प्रति संवेदनशील होना अच्छी बात है मगर सवेंदना और दया में अंतर होता है..ये कथन “क्या वो दिल से हमे अपने बराबर समझते है” ये दया मांगता है.. क्यों दया के पात्र हैं हम.. प्रकृति ने नारी और पुरुष को सामान संसाधनों के साथ पैदा किया.. हम फिर किसी भी बात के लिए पुरुष की सहमति पे क्यों आकार अटैक जाते हैं.. अगर किसी ने कह दिया अबला हैं तो अबला हैं?

    नहीं.. जब तक स्त्रियाँ अपनी स्तिथि के लिए समाज.. सरकार.. या दुनिया का चेहरा देखती रहेंगी वो कमज़ोर ही रहेगी.. जरुरत दुनिया की नहीं अपनी मानसिकता बदलने की है.. दुनिया तो वक़्त के साथ बदल ही जाती है

    इतिहास में देखिये.. रानी लक्ष्मी बाई.. सरोजिनी नायडू जैसी महिलायें भी हैं.. उन्हें तो किसी की स्वीकृति की कभी जरुरत नहीं पड़ी.. भगवान् भी उसकी मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करता है..

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    1. जी आपसे सहमत हूँ मैं…मेरा वो कतई मत नहीं था जैसा आपने समझा, मैं बस इतना हीं कहना चाह रही की…अभी समाज की यह स्थति हैं जहाँ पर कहा जाता हैं कि वर्तमान में..हमारी स्थति में पहले की भांति बहुत सुधार आया है लेकिन क्या सच में ऐसा हुआ हैं तर्क संगत कर के देखा जाए तो हाथों में बस कुछ बातें हीं लगती हैं… आप बिल्कुल सही हैं प्रकृति ने हमारे साथ तो कोई भेदभाव नहीं की..इसलिए तो हम भेदभाव सहना भी उचित नहीं समझते,और सही कहा आपने की मानसिकता खुद की बदलनी होगी…जी वो तो कभी जरुरत हीं नहीं पड़ेगी.. हर स्त्री अपनी मनोदशा समझती हैं और कभी भी खुद को वो पुरुषों से कम नहीं आंकती हैं, इसके ढेरो उदाहरण हैं… जैसा की आपने भी रखा!! लेकिन मैम, मेरा बस इतना कहना हैं… जब सब बदल रहा,सोच बदल रहा…तो फिर भी,आज हमारे भारतीय परिवेश में बेटी बचाने के लिए मुहीम क्यों चलाये जा रहें..सोचिये जरा इसे भी..
      सरकार को हमारी बेटियों के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना चलानी पड़ रही है,,ब्रांड एंबेसडर बड़े बड़े बनाये जा रहे हैं,,, बात यह है कि क्या अब हमारी बेटियों को स्वत्रंत और निडरता से जीवन जीने के लिए,,, खुली हवा में सांस लेने के लिए भी कानून बनाना पड़ेगा????
      इससे शर्मनाक क्या कुछ हो सकता हैं आप बोलों… हम तो किसी पर निर्भर नहीं हैं न दया चाहिए फिर भी,हमें तो वो स्थति चाहिए जैसा हम deserve करते हैं… जैसा आपने भी कहा कि भगवान ने हमें उनके स्वरुप हीं बनाया हैं… वैसे मैं आपके विचारो से पूरी तरह संतुष्ट हूँ…लेकिन मेरे विचार वो नहीं जैसा आपके समक्ष इस पोस्ट ने delivered किया!!

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      1. ये स्वभाविक है.. सत्ता वर्ग हमेशा सत्ता में रहना चाहता है और जब उसे लगता है विपक्ष पूर्णतः विरोध पर उत्तर आया है तो वो साम, दाम, दंड भेद सब कुछ अपनाता है.. अगर ऐसा नहीं हुआ तो प्रकृति का नियम भांग हो जायेगा.. मैं कुछ बुद्धिजीवियों की जो समझते हैं स्त्री-पुरुष होने से पहले हम सब मनुष्य है उनकी बात नहीं कर रही।
        जहां तक बात है बदलाव की तो सदियों की परम्परों को तोड़ने के लिए कुछ पीढ़ियों को तो संघर्ष करना पड़ेगा और बलिदान भी देना पड़ेगा तब जाकर बदलाव आएगा.. रातों रात कुछ नहीं होगा.. अभी तो हमने संघर्ष का पहला चरण भी पार नहीं किया.. पहला चरण खुद पर विशवास करना.. ये चरण सबसे मुश्किल है और सबसे ज्यादा भ्रम भी यहीं उत्पन होगा.. हम सब को अपने व्यक्तिगत संघर्षों में जितना है.. तब जा कर ये एक अभियान बन पायेगा और फिर एक बदलाव.. अभी बहुत वक़्त लगेगा.. पर अगर हम खुद की जगह दूसरों पर विशवास करंगे तो समय सीमा बढ़ जायेगी.. बदलाव तो आना ही है ये तय है.. कितनी जल्फी और किताबी देर से आता है ये सोचने का विषय है..

        खैर ये लंबी बहस है.. गहरा मुद्दा.. आपको पढ़ कर लगता है आप सुलझी सोच की मलिका हैं.. अपने आस पास के लोगों को जागरूक करें कुछ लोग आपकी बात से समझ जाएंगे कुछ लोग आपको देख कर समझ जाएंगे और कुछ लोग आपसे ईर्ष्या काट समझ जायेंगे.. हमारा काम चलते रहना है.. कितने लोग साथ चले ये मंज़िल पर पहुँच कर देखेंगे.. खुश रहिये..प्यार बांटते रहिये.. प्यार बड़ी चीज है बाकी सब आसानी से हो जाता है 💐💐

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      2. जी…मुद्दा यूँ तो ज्यादा बड़ा नहीं हैं,लेकिन आज सभी उस ऒर हीं देखते हैं कि समय से सब बदलाव होगा और हो रहा हैं बदलाव तो परेशानी यहाँ बढ़ती हैं और मामला पेचीदा बनने लगता हैं…खैर,आपसे और आपकी सोच मुझे बहुत प्रभावित करती हैं…और प्यार के साथ जीना तो सीखा हीं हमनें बचपन से और लोगों का प्यार जैसे आपका भी प्यार जब यूँ मिलता हैं तो ज़िन्दगी खूबसूरत लगने लगती हैं..आप भी सदा मुस्कुराते रहिये,खुश रहिये…आपकी मुस्कान से हमें भी मुस्कुराने की प्रेरणा मिलती हैं!!

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      3. आप जैसे कुछ और युवा अगर समाज की बागडोर संभाल ले तो सुधार जल्दी होगा.. मुझे हमारी आने वाली पीढ़ियों से बहुत उम्मीदें है.. मेरे पास बस प्यार ही है इसलिए वही दे सकती हूँ.. मेरी मुस्कान आपके लबो पे भी खिली इससे ज्यादाखुशी की और क्या बात हो सकती है.😊💐💐

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      4. और वो प्यार कितना बहुमूल्य हैं मेरे लिए ये मैं बयां भी नहीं कर सकती शब्दों में..

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      5. बयाँ करने की जरूरत भी.. प्यार लफ़्ज़ों का मोहताज नहीं.. आप बस मुस्कुराते रहिये.. प्यार पनपता रहेगा 😊

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  6. कहीं कहीं मुझे लगता है कि ऐसा ही है जैसा आप बता रही है …
    पर मै एक पुरुष ठहरा …… मेरे द्वारा स्त्री की मनो दशा पूरी तरह जानना संम्भव नही ….
    लेख जकझोरने वाला है…
    कहु तो एक आईना…..😢😢😢😢

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    1. मुकांसु आप थोड़ा भी उस मनोदशा को समझे क्या वो काफी नहीं हैं हमारे लिए…थैंक्स डिअर, आप सब का साथ हीं सुधार में मदद करेगा…

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  7. बहोत कोमल शब्दों में इतने कठोर विषय को रखा..लाज़वाब..
    सिर्फ एक रचना ही नही है ये..सच है बहोत बड़ा..👍

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    1. Thank you Shweta… हाँ कोशिश तो की हैं मैंने की उस सच से सबको थोड़ा अवगत करा दूँ और बता दूं कु बदलाव कहाँ तक सफल हैं आप तय करो..

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      1. सच्चाई समझ के अगर जीवन में उतारा जाए तो हर बदलाव सम्भव है..कोशिश बहोत अच्छी की आपने..😃

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      2. जी बदलाव होगा जरूर… जब आप और हम यूँ हीं अपनी सोच का दायरा बढ़ाएंगे तो बदलाव निश्चित हीं संभव हैं!! धन्यवाद श्वेता आपका…😊

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  8. हां ये कठोर सत्य है कि एक रूह भी बसती है इस जिस्म में , बहुत उम्दा रचना , बड़ा वाला फैन होता जा रहा हु में तुम्हारा ज्योती जी 👌👌

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  9. That’s a great post. Today also people consider women as inferior to men. I can’t understand this mentality. I think women are far I superior to men as they can do things which men can only think of. I hope a day comes when women get the respect they deserve..

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    1. Thank you Mehul!!

      …A day comes…I Don’t think about that day dear…,just bcz one valid reason, everyone tells that you deserve better, they are telling you to move on because they don’t care enough to be better. They will not put in the effort or energy they KNOW you deserve…😢😢 

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      1. 😂😂😂😂…चरण स्पर्श प्रभु…इसी को देखना था..जो नज़र आया..😉😉 सच में!अब बताओं सुधार की स्थति मुझें, आप एक बात नही सुन सकते खुद के खिलाफ अब खुद को उनके जगह रख के देखो…फिर सोचों..

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