हिंदी गुमां है तुझपे!!

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रग-रग में तू बहती है…तुझसे हीं हममें संस्कार,संतुष्टि,सरलता का सम्मिलित संगम बनता है। अपनों सा प्यार-दुलार,तृप्ति,तृष्णा तुझसे हीं सब पाया है…मन में उमड़ते विचारों पर अक्सर तेरा हीं लगा है पूर्णविराम। धड़कनों में धड़कती है…श्वासों में तू हीं पल-पल आती है-जाती है और फिर ठहर कर हममें ही समा कर हमारे अस्तिव का भान कराती हैं। तू हिन्दी है…तू हमारा स्वाभिमान है…तू माँ है..ममता है…मीठी सी,मधुरिम सी भाषा तू हमारी हिंदी है,कभी कलकल बहती कभी रिमझिम झरती तू भाषा हीं नहीं हमारी वरण शान हमारी हिंदी है!!!

आज 14सितंबर है और आज हमारे मातृभाषा की वर्षगांठ है। मैं एक गर्वित भारतीय हूँ जिसे हिंदी से उतना हीं प्यार है जितना अपनी माँ से इस भारतवर्ष से…या यूँ कहुँ हिंदी माँ है मेरी इससे मेरा उतना हीं लगाव और जुड़ाव है जितना अपनी जन्म दात्री माँ से…मेरे रगों में,श्वासों में बहती है हिंदी…जान बसती है इसमें मेरी। भाषा हीं एक ऐसी माध्यम है जिससे हम लोगों के बीच उतर कर उनसे अपनापन बाँट सकते है और वो भाषा अगर हमारी खुद की हो तो इसमें और ज्यादा अपनापन है जुड़ाव लगता है हालाँकि और भाषा सीखने और बोलने में न बुराई है न हीं हमारा नुकसान परंतु आधुनिकता के दौड़ में हम अपने विरासत को अनदेखा कर दे तो ये सही नहीं रहेगा…हम आगे जरूर बढ़े खूब नया सीखें लेकिन अपनी जड़ों को साथ ले कर तभी हम उन्नति कर सकेंगें!!! 

चेतना का स्पष्ट मानवीकरण ही भाषा है। सरल शब्दों में कहा जाय तो भाषा, हमारे विचारों की अभिव्यक्ति का एकमात्र साधन है। अगर भाषा ना होती तो तो विचारों की उक्ति असम्भव ही थी। परिवर्तन और उन्नयन इस प्रकृति की जीवंतता के दो महत्वपूर्ण नियम हैं। ठीक उसी प्रकार भाषा का समय के साथ परिवर्तन, उसकी जीवंतता, उसकी नवीनता का मुख्य आधार है। अगर भारत की भाषाई स्थिति के बारे में विचार करें तो यह स्पष्ट है कि हिन्दी एक राष्ट्रीय जनसंपर्क की भाषा बन चुकी है। हिन्दी भाषा और हिन्दी साहित्य का भविष्य बहुत बड़ा है। हिन्दी की एक विशेषता यह भी है कि यह स्थानीय लोकभाषा की विशेषताओं से सम्पन्न है। क्षेत्रीय शब्दों, वाक्य सरंचना आदि को अपने में निहित करने कि विशेषता सिर्फ हिन्दी में ही है।

18 वीं सदी में हिन्दी के अस्तित्व का उत्थान लोक भाषा के माध्यम से ही हुआ है। हिन्दी कई टुकड़ों में बंटी थी, इसको हम यूं भी कह सकते हैं कि लोक भाषाओं का विशुद्ध एकाकीकरण हिन्दी है। वर्ष 1881 में पहली बार बिहार ने हिन्दी को राज्य की आधिकारिक भाषा घोषित कर के हिन्दी भाषा का कर्ज चुकाया। उसके बाद आज के दिन 1949 में हिन्दी, भारत की राजभाषा के रूप में सम्मानित हुई।  
तब से लेकर आज तक हिन्दी का प्रचलन अपने आप में कई कहानी कहता है। किन्तु निःसन्देह, 21वीं सदी हिन्दी का स्वर्णिम युग है। तकनीकि और विज्ञान का हिन्दी की ओर आकर्षण, भावनाओं के आदान प्रदान में हिन्दी की महत्ता को परिभाषित करता है।   
किन्तु, हिन्दी का उदार स्वभाव हिन्दी के लिए संकट उत्पन्न कर सकता है। जिस तेजी से हिन्दी अन्य भाषाओं को स्वयं में स्थान दे रही है वह इसकी आधारशिला में सेंध प्रतीत हो रही है। आजकल बड़ी चतुराई से अँग्रेजी व अन्य भाषाओं के शब्द हिन्दी का रंग ओढ़ के हिन्दी बने बैठे हैं। यह बड़ा ही दुष्कर है कि हिन्दी बोलते समय आप अँग्रेजी से अछूते रहें। अँग्रेजी बोलना अनुचित नहीं हैं किन्तु, हिन्दी और अँग्रेजी में अंतर ना जान पाना अनुचित है। यह हिन्दी के आस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करती है। 
अतः हिन्दी को शुद्ध रूप से ग्रहण करें और हिन्दी को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में सहयोग दें!!!!

                  

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57 thoughts on “हिंदी गुमां है तुझपे!!

      1. सभी यहाँ एक-दूसरे के लिए हीं है और एकदूसरे से ही सीखते हुए आगे बढ़ने के लिए प्रयत्नशील है…पदचिन्हों पर नहीं आप हमलोगों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें..😊

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